स्वामी विवेकानन्दजी के अपने शिष्यों के साथ समय-समय पर अनेक महत्त्वपूर्ण विषयों पर जो वार्तालाप हुए थे, वे इस पुस्तक में लिपिबद्ध है। ये वार्तालाप धार्मिक, सांस्कृतिक, सामाजिक तथा शिक्षासम्बन्धी अनेक विषयों पर है। इनमें स्वामीजी ने यह दर्शाया है कि वास्तव में भारतीय संस्कृति का क्या अर्थ है; साथ ही उन्होंने वे मार्ग तथा साधन भी दर्शाये हैं, जिनसे हमारी इस संस्कृति का पुनरुत्थान हो सकता है। उनकी ओजपूर्ण तथा प्रोत्साहनयुक्त वाणी में सचमुच वह संजीवनी है, जिससे हमारा समस्त जीवन हो सम्पूर्ण रूप से परिवर्तित होकर हम एक महान् उच्च आदर्श को पहुँच सकते है। मूल पुस्तक का अनुवाद स्वामी ब्रह्मस्वरूपानन्दजी, उत्तरकाशी ने किया है। उनके इस बहुमूल्य कार्य के लिए हम उनके परम कृतज्ञ है। डॉ. पं. विद्याभास्करजी शुक्ल, एम.एस-सी., पी-एच.डी., प्रोफेसर, कॉलेज ऑफ साइन्स, नागपुर को भी हम हार्दिक धन्यवाद देते हैं जिन्होंने इस पुस्तक के प्रूफ-संशोधन के कार्य में हमें बड़ी सहायता दी है। के हमें विश्वास है, इस पुस्तक से हिन्दी-जनता का हित होगा।
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