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इसमें बिना किसी भेदभावके भक्तचरितोंका वर्णन हुआ है भारतवर्षके विभिन्न क्षेत्र, भाषा, जाति, सम्प्रदाय एवं वर्ग आदिके सन्तोंका चरित इसमें वर्णित है। अतः इसके पठन-श्रवणसे उक्त आधारोंपर होनेवाली अविवेकमूलक विषमताएँ दूर होती हैं, परंतु इसके साथ ही भक्तोंके चरितमें कुछ घटनाएँ अत्यधिक चमत्कारी होनेके कारण आधुनिक युगके परिवेशमें सब लोगोंको आत्मसात् होना सम्भव नहीं हैं, साथ ही वे सबके लिये अनुकरणीय भी नहीं हैं, फिर भी भक्तमाल ग्रन्थसे पारस्परिक एकता तथा समरसताकी प्रेरणा प्राप्त होती है। इसकी गाथाओंमें कई स्थलोंपर हमारी संस्कृतिकी छटाके दर्शन होते हैं, जो आज दुर्लभ हो रहा है।